शनिवार, 10 मई 2014

मेरी माँ
एक दिन
माँ सपने में आई 
कहने लगी, सुना है 
तूने कविताएँ बनाईं ?
मुझे भी सुना वो कविताएँ 
जो तूने सबको सुनाई
मैं अचकचाई 
माँ की कहानी माँ को ही सुनाऊँ !
माँ तो राजा-रानी की कहानी 
सुनाती थी 
उसे एक आम औरत की कहानी कैसे सुनाऊँ ?
माँ इंतजार करती रही  
जैसा जीवन में करती थी,
कभी खाना खाने के लिए 
तो कभी देर से घर आने पर
घबराई सी देहरी पर बैठी 
पिताजी की डांट से बचाने के लिए |
आँखें नम हुईं 
आवाज भर्राई 
अपने को नियंत्रित कर 
उससे आँखें मिलाये बगैर 
उसे कविता सुनाई |
एक औरत थी 
औसत कद, सुंदर चेहरा 
सुघड़ देह 
बड़ी- बड़ी आँखें 
घूँघट से बाहर झाँकतीं 
सुबह घर को, दोपहर बच्चों को 
रात पति को देती 
हमेशा व्यस्त रहती 
पति की प्रताड़ना सहती,
बच्चों को बड़ा करती 
घर आये मेहमानों का स्वागत करती,
सत्कार करती 
फिर भी कभी न थकती 
पति और बच्चों की खातिर 
जिसकी रात भी दिन ही रहती  
सुघड हाथों से घडी गई रोटियां क्या,
सभी पकवान 
रसोई घर की बढ़ाते शान
जो कम रुपयों में भी घर चला लेती
मुफ़लिसी में भी
सभी रिश्ते निभा लेती
शरीर की शान,  आभूषणरहित रहती 
लज्जा को अपना आभूषण कहती 
बुरे वक्त में
घर की इज्जत बचाती  
शरीर से छोटी वो 
अपने कद को हमेशा उँचा रखती,
बस देना ही जो अपना धर्म मानती 
पति की सेवा, बच्चों की परवरिश में 
पूरा जीवन निकाल 
एक दिन हो गई  निढाल 
जीवन की अंतिम सांस
बेटी की गोदी में निकाल 
विदा कह गई इस जीवन को 
शायद यह कहती-कहती 
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ,
मैंने माँ की और देखा,  
माँ का चेहरा सपाट था 
बिना उन हाव-भावों के
जो राजा-रानी की कहानी
सुनाते वक्त उसके चेहरे पर होते थे,
वो धीमे से मुस्कुराई, फिर कहा...
सच ही लिखा है, औरत की तकदीर
जन्मों से यही है 
फिर भी, एक कविता ऐसी लिख 
जिसमें एक राजा हो एक रानी हो 
दोनों की सुखद कहानी हो
सपने तो अच्छे ही बुननें चाहियें 
शायद कभी सच हो जाएँ !
वो वापस चली गई यह कहकर  
फिर आउंगी, लिख कर रखना
राजा-रानी की कहानी 
कभी तो सच होगी ?

जो मैनें अपनी बेटियों के लिए बुनी थी |

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

मेरे मन



मेरे मन ,
बसंत के गाँव चल तो सही
सब कुछ है वहीं
उमंग उल्लास का गाँव है, रे 
प्रीत की डोर थामे ,चल तो सही | सब कुछ है वहीं |

सावंरिया की बंसी है
गोपियों का रास
रस से भरी राधा है
मदमाता मधुमास |

प्यार की मनुहार में पगा
सतरंगी यौवन है
गौरी की गारी को
झेल रहे बनवारी हैं |

नेह की पिचकारी है
रंगों की बौछार है 
पोखर पड़े गालों पे
चटक गुलाबी प्यार है |

वंशी की लय पे छिड़ा
फागुन का अभिसार है
सखा नंदलाल भये पलाश
वृषभानु लली भई गुलाल है |

बहकी-बहकी राधा है
चहंके-चहंके मुरारी
जोरी-बरजोरी है 
बुरा न मानों होरी है |


मोहिनी चोरड़िया 



  

  

  

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

ये फागुनी होली

ये फागुनी होली

पलाश, टेसू के फूलों की होली
केसर, चन्दन के पीले रंगो की होली
उड़ते अबीर गुलाल की होली ,
रंगों के अम्बार की होली
ढोल की थाप पर कोडे़ मारती औरतें, और
चहचहाते लोगों की होली
ये फागुनी होली ।  

आज बसंत बहार की होली
हँस रही अमराई की होली
फूली सरसों की क्यारी की होली
खेतों और खलिहानों की होली
मदमाते मधुमास की होली,
कली भौंरों के अभिसार की होली
ये फागुनी होली ।

बृज की बरसाने की होली 
राधा और गोपाल की होली
जोरी और बरजोरी की होली
गौरी और साजन की होली
बाहों की जंजीरों की होली
आज हसीन नज़ारों की होली
ये फागुनी होली ।


मस्ती ओ उल्लास की होली
देवर और भाभी की होली
जीजा और साली की होली
सारंगी सांसों की होली
सतंरगी यौवन की होली
आज मेरे हमजोली की होली
ये फागुनी होली  | 


चंग और ढोल की थाप पर 
मंजीरे लेकर 
फाग गाते लोगों की होली
भंग की तरंग में डूबी 
राजस्थान की होली 
प्यार के रंग बिखेरती ये हुडदंगी होली
ये फागुनी होली । 






मोहिनी चोरड़िया  

 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

मालिनी बसंत


तन-मन की तरुणाई लाई
मालिनी बसंत आई|

फूलों का उपहार
गंधों का त्यौहार
भौंरों का अभिसार लाई
मालिनी बसंत आई |

मदमाता मधुमास
फूलता पलाश
पवन पगलाती लाई
मालिनी बसंत आई |

रसभरी अमराई
कीटों का गुँजार
कलियों में सिहरन लाई
मालिनी बसंत आई |

मन में उमंग
तन में उल्लास
आँखों में लाज लाई
मालिनी बसंत आई |

नेह की पिचकारी
केसर,चंदन ,टेसू के
रंगों का अम्बार लाई
मालिनी बसंत आई |

कविताओं का कुंकुम
गीतों का अबीर
गज़लों का गुलाल लाई
मालिनी बसंत आई |

रसिया और फाग लाई
केसरिया मजाक लाई
तन-मन की तरुणाई लेकर
मालिनी बसंत आई |


मोहिनी चोरड़िया


गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बसंत महीने में


बनन में बागन में
बगरयो बसंत है |
खेतन,खलिहानन में
फागुनी उमंग है ||


फूटी अमराइयों में
बासंती सुगंध है |
गुनगुन गुंजाता
आम्रकुंजों में अनंग है ||


चम्पा और चमेली ने
कलियाँ चटकाई हैं |
टेसू और पलाश ने
आग लगाईं है ||


गाँवों ढाणियों की डगर
फूलों का लिबास है |
पर्वतों मैदानों में
सेमल अमलतास है ||


बसंत महीने में
पवन पगलाई है |
प्रकृति बंजारिन बनी
मस्ती भरी रंगत छाई है ||


मोहिनी चोरडिया



मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मेरी माँ

एक दिन माँ सपने में आई
कहने लगी, सुना है
तूने कविताएँ बनाईं ?
मुझे भी सुना वो कविताएँ
जो तूने सबको सुनाई
मैं अचकचाई
माँ की कहानी माँ को ही सुनाऊँ !
माँ तो राजा- रानी की कहानी
सुनाती थी
उसे एक आम औरत की कहानी
कैसे सुनाऊँ ?
माँ इंतजार करती रही
जैसा जीवन में करती थी,
कभी खाना खाने के लिए
तो कभी देर से घर आने पर
घबराई सी देहरी पर बैठी
पिताजी की डांट से बचाने के लिए |
आँखें नम हुईं
आवाज भर्राई
अपने को नियंत्रित कर
उससे आँखें मिलाये बगैर
उसे कविता सुनाई |
एक औरत थी
औसत कद , सुंदर चेहरा
सुघड़ देह
बड़ी- बड़ी आँखें
घूँघट से बाहर झाँकतीं
सुबह घर को, दोपहर बच्चों को
रात पति को देती
हमेशा व्यस्त रहती
पति की प्रताड़ना सहती ,
बच्चों को बड़ा करती
घर आये मेहमानों का स्वागत करती ,
सत्कार करती
फिर भी कभी न थकती
पति और बच्चों की खातिर
जिसकी रात भी दिन ही रहती
सुघड हाथों से घडी गई रोटियां क्या, 
सभी पकवान
रसोई घर की बढ़ाते शान .
जो कम रुपयों में भी घर चला लेती
मुफ़लिसी में भी
सभी रिश्ते निभा लेती .
शरीर की शान, आभूषण, रहित रहती
लज्जा को अपना आभूषण कहती
बुरे वक्त में
घर की इज्जत बचाती
शरीर से छोटी वो
अपने कद को हमेशा उँचा रखती ,
बस देना ही जो अपना धर्म मानती
पति की सेवा ,बच्चों की परवरिश में
पूरा जीवन निकाल
एक दिन हो गई निढाल
जीवन की अंतिम सांस
बेटी की गोदी में निकाल
विदा कह गई इस जीवन को
शायद यह कहती -कहती
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ,
मैंने माँ की और देखा,
माँ का चेहरा सपाट था
बिना उन हाव-भावों के जो राजा -रानी की कहानी
सुनाते वक्त उसके चेहरे पर होते थे ,
..वो धीमे से मुस्कुराई ,फिर कहा ..
सच ही लिखा है,
औरत की तकदीर जन्मों से यही है
फिर भी एक कविता ऐसी लिख
जिसमें एक राजा हो एक रानी हो
दोनों की सुखद कहानी हो .
सपने तो अच्छे ही बुननें चाहियें
शायद कभी सच हो जाएँ !
वो वापस चली गई यह कहकर
फिर आउंगी ,लिख कर रखना राजा- रानी की कहानी
कभी तो सच होगी ?
जो मेनें अपनी बेटियों के लिए बुनी थी |



मोहिनी चोरडिया

रविवार, 27 नवंबर 2011

कितना अच्छा लगता है ?

कितना अच्छा लगता है ?

फूल का खिलना
बच्चे का हँसना
पक्षियों का चहचहाना
आम का बौराना,
कितना अच्छा लगता है ?

फूलों का रूखसार
गंधों का त्यौहार
भौरों का अभिसार
बचपन का वह प्यार ,
कितना अच्छा लगता है ?

लता का वृक्ष से लिपटना
अम्बर का धरती से गले मिलना
फूल का परागित होना
माँ का एक बच्चे को जन्म देना ,
कितना अच्छा लगता है ?

पवन का पगलाना
वृक्षों का इठलाना
बयार का बासंती होना
अमराइयों की जुल्फों में भौरों का खो जाना ,
कितना अच्छा लगता है ?

मदमाता मधुमास
फूलता पलाश
आँखों में उतरते इन्द्रधनुषी रंग
प्रियतम का संग ,
कितना अच्छा लगता है ?


मोहिनी चोरडिया |